इष्टिकापुरी यानि कामना की सिद्धि का रास्ता है इष्टापथ।
मानव जीवन का इष्ट है मोक्ष। मोक्ष मार्ग ही इष्टापथ है। इष्ट साधना का
माध्यम है इष्टि। इष्टि का तात्पर्य है यजन, जहाँ स्रष्टि के प्रारंभ से
ही निरंतर होते रहे यजन। चतुर्दिक वाहिनी कालिंदी का तट यज्ञाग्नि में -
स्वाहा सुगन्धित और पर्यावरणीय गंधवायु से सारा परिवेश प्रफ्फुलित रहता
था। इष्टापथ ही बाद में हुआ इष्टिकापुरी।
इष्टिका का अर्थ है ईंट। संसार में इष्टिका (ईंट) का सर्वप्रथम प्रयोग
यज्ञों में हुआ। इसीलिए गंगा-यमुना के दोआव स्थित ऋषि भूमि (इष्टापथ) के
जिस भाग में, यज्योपयोगी त्रिकोणीय, चतुषकोणीय, पन्चकोनीय, सप्तकोनीय,
नवग्रहीय, नक्षत्रिय आदि आकृतियो की-इष्टिका प्रयोग के वैदिक विधान का
जहाँ पालन करते हुए इष्टिकाओं का निर्माण व पकाने की प्रक्रिया अपनाई गई
वह भू-भाग इष्टिकापुरी कहलाया। आज इसे इटावा कहा जाता है ईंट+अवा
(भट्टा) का संयुक्त शब्द बना इटावा।
गंगा-यमुना के इस दोआब की श्रेष्ठ मिटटी का यह गुण सर्वविदित है - यहाँ
4-4 फसले होती हैं साथ ही इटावा में आज भी अन्य क्षेत्रों के मुकाबले
काफी अधिक ईंट-भट्टे हैं और यहाँ की अब्बल दर्जे की ईंट विश्व भर में अति
श्रेष्ठ है।यहाँ हिन्दू मंदिरों से घिरे 15वीं शताब्दी के एक क़िले के अवशेष भी हैं। इटावा का पुराना नाम इष्टिकापुर कहा जाता है।
मानव जीवन का इष्ट है मोक्ष। मोक्ष मार्ग ही इष्टापथ है। इष्ट साधना का
माध्यम है इष्टि। इष्टि का तात्पर्य है यजन, जहाँ स्रष्टि के प्रारंभ से
ही निरंतर होते रहे यजन। चतुर्दिक वाहिनी कालिंदी का तट यज्ञाग्नि में -
स्वाहा सुगन्धित और पर्यावरणीय गंधवायु से सारा परिवेश प्रफ्फुलित रहता
था। इष्टापथ ही बाद में हुआ इष्टिकापुरी।
इष्टिका का अर्थ है ईंट। संसार में इष्टिका (ईंट) का सर्वप्रथम प्रयोग
यज्ञों में हुआ। इसीलिए गंगा-यमुना के दोआव स्थित ऋषि भूमि (इष्टापथ) के
जिस भाग में, यज्योपयोगी त्रिकोणीय, चतुषकोणीय, पन्चकोनीय, सप्तकोनीय,
नवग्रहीय, नक्षत्रिय आदि आकृतियो की-इष्टिका प्रयोग के वैदिक विधान का
जहाँ पालन करते हुए इष्टिकाओं का निर्माण व पकाने की प्रक्रिया अपनाई गई
वह भू-भाग इष्टिकापुरी कहलाया। आज इसे इटावा कहा जाता है ईंट+अवा
(भट्टा) का संयुक्त शब्द बना इटावा।
गंगा-यमुना के इस दोआब की श्रेष्ठ मिटटी का यह गुण सर्वविदित है - यहाँ
4-4 फसले होती हैं साथ ही इटावा में आज भी अन्य क्षेत्रों के मुकाबले
काफी अधिक ईंट-भट्टे हैं और यहाँ की अब्बल दर्जे की ईंट विश्व भर में अति
श्रेष्ठ है।यहाँ हिन्दू मंदिरों से घिरे 15वीं शताब्दी के एक क़िले के अवशेष भी हैं। इटावा का पुराना नाम इष्टिकापुर कहा जाता है।
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