बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

कोच्चि के लिए दूसरी फ्लाइट

 एयरपोर्ट की भागमभाग में लगेज भूलना ,घर से दो घण्टे की लम्बी ड्राइव के बाद रायपुर से मुम्बई की पहली फ्लाइट, फिर दो घण्टे मुंबई एयरपोर्ट में इंतजार और कोच्चि के लिए दूसरी फ्लाइट । अंत में कोच्चि एयरपोर्ट से मुन्नार तक 5 घण्टे की लम्बी सड़क यात्रा । सुबह 6 बजे से लगातार सफर से रात 9 बजे होटल पहुँचते थककर चूर हो चुके थे । होटल के रेस्टोरेंट में डिनर ले कमरे में आते ही गहरी नींद में डूब गयी । शाम को देखे चियापारा जलप्रपात के धूम्र छीटें पूरी रात स्वप्न को भीगोते रहे । सुबह 6 बजे खिड़की पर लगा पर्दा खिसकाया । ऊँचाई से नीचे होटल की पार्किंग में रखी ढेरों गाड़ियां दिख रही थी । अरे गाड़ी के पास रिज़वी अभी से क्या कर रहा है ?? बाद में मालूम हुआ कि होटल की पार्किंग में लगी सभी गाड़िया पर्यटकों को घुमाने वाले ड्राइवर के मालिकों की है । 10 दिनों तक केरल के अलग अलग प्राकृतिक स्थानों को घुमाने वाले इन ड्राइवर्स का पूरा जीवन अपने परिवार से दूर गुजर जाता है ।
जिन खतरनाक रास्तों पर साँसे थामे हम सुरक्षित निकल आने की दुआ मांग रहे थे उन खतरों से ये रोज खेलते है । हर बार एक अजनबी परिवार के साथ दिन रात साथ रहते ये बंजारे ड्राइवर्स 10 दिन के लिए उस परिवार के सदस्य हो जाते है। भिन्न भिन्न पड़ाव पर हमपेशा ड्राइवर्स आपस में अक्सर मिलते रहते है । इनकी कार की सीट ही रात का बिस्तर होती है । मैने गाड़ी की डिक्की में रिज़वी का भी एक छोटा सूटकेस देखा था । सभी ड्राइवर्स घुटनों तक मुड़ी सफ़ेद लूँगी पहने अपनी गाड़ियां धोते मलयाली में हँसी मज़ाक कर रहे है । फोन पर चाय ऑर्डर कर कमरे की दूसरी दिशा में एक दरवाज़ा की तरफ़ बढ़ी । रात में थकान से कमरे में आते ही बिस्तर पर धम्म वाली हालत थी । इस दरवाज़े पर लगे पर्दे की वज़ह से ध्यान भी नही गया था। पर्दा हटाकर दरवाज़ा खोला और सचमुच चीख पड़ी ....ओह नो ,ओह्ह नो ..माय गॉड .. खिड़की से सटे पहाड़ पर चाय बागान से आच्छादित मखमली गुदाज़ कालीन बिछी थी ।
रात के अंधेरे में हम इसी रास्ते से आये थे लेकिन अंधेरा होने की वजह से इस अद्भुत नजारे से वंचित रह गए थे । मैंने पहली बार चाय बागान देखे । सफेद उड़ते बादलों से थपकियाँ लेता चाय बागानों वाला पहाड़ । मेरी हाय हाय से पतिदेव की नींद खुल गयी -- ये तुम्हारा अच्छा है खुद की नींद खुल जाए तो दूसरों का सोना हराम कर दो । मैंने लगभग हाथ खींचते हुए कहा -- चाय बागान से आपके लिए चाय आर्डर किया है । बस कमरे में आती ही होगी ।
आपके लिए केरल यात्रा का ये लेख लिखते वक़्त भी लग रहा है कि मैं वापस अपने घर में हूँ और मुन्नार के ऊँचे पहाड़ों पर बादलों की दौड़ा भागी के बीच वो चाय बागान वैसे ही चमचमा रहे होंगे । समझ नही आ रहा है कि जिन्होंने चाय के बागान नही देखे उनकों उस सौंदर्य की सटीक वयाख्या करने वाली शब्दशक्ति कहाँ से लाऊ, फिर भी कोशिश कर रही हूँ । कल्पना करिए कि कच्ची सुबह की भीनी भीनी महक में जहाँ तक नज़र जा रही है वहाँ तक पहाड़ तराश कर उकेरे चाय बागान फैले है । व्यवस्थित, समान ऊँचाई की चाय की घनी झाड़ियों की कंच हरी पत्तियाँ कोहरे में लिपटी धूप की बाट जोह रही है । क्षितिज से गलबहियाँ करते चाय बागान अपने रूप लावण्य से बेखबर अलमस्त दूर तक पसरे हुए है । पहाड़ के ऊबड़खाबड़ , असमतल रूप से रुष्ट किसी ने समतल हरे गलीचे से इन बुलंदियों को ढाँक दिया जैसे । सम्पूर्ण पहाड़ी ढाल पर चाय की सघन झाड़ियों के बीच थोड़े थोड़े अंतराल पर पहाड़ को गोलाई में लपेटती पगडंडियाँ । होटल की बालकनी से देखने पर लगता था कि पहाड़ों पर दूर दूर तक गुदगुदी हरी कालीन बीछी है जिस पर काली पगडंडियों की लकीरें है । चपल , चंचल बादलों के बेपरवाह कारवाँ अथखलियाँ करते घने बागानों में घुसपैठ कर रहे थे । अब तक चाय के लिए कमरे की काल बेल बज चुकी थी । सर्विस बॉय को चाय बालकनी की टेबल पर लगाने के लिए कह पतिदेव को आवाज़ दी -- चीयर्स ..हाट टी सिटींग इनसाइड अ कोल्ड टी गार्डन ।
इस बीच कान्हा जी भी आँख मलते पहुँच गए -- मम्मा आज बाहुबली के गाँव जाएंगे न ?? रिज़वी अंकल ने प्रॉमिस किया है । हम सभी इडली , सांभर , उत्तपम्म , डोसा , नारियल चटनी के नाश्ते के बाद 9 बजे तक तैयार हो चुके थे। कार में बैठते ही रिज़वी ने आज के आनन्द की घोषणा की -- तुमको माल्लुम है, आज हम चलेंगे मुन्नार के राजामलाई इराइकुलम नेशनल पार्क , मट्टुपेट्टी डेम , देवीकुलम नयनामक्कड़ और अटटुकाल वाटरफॉल । हे भगवान ! थोड़ा तो लिहाज़ किया होता इतने कठिन नाम बोलने से पहले । अंकल इन सब जगह में बाहुबली का गाँव कौन सा है ?? रिज़वी ने कान्हा की व्यग्रता देख सांत्वना दी -- चलेंगा न कानन । यू फिकर नाट । हमारी कार चाय बागानों के बीच लहराती सड़कों पर आगे बढ़ रही थी ।अब हम केरल के समुद्री इलाके से बहुत दूर हिल स्टेशन मुन्नार में थे जहाँ नारियल के समुद्रतटीय पेडों का नामो निशान न था । इन पहाड़ों पर घने और बेतरतीब जंगल खत्म हो चुके थे । यहाँ इंसानों के करीने से तराशे चाय बगीचों का एकछत्र आधिपत्य था । सड़क के दोनों तरफ विशाल पेडों पर अफ्रीकन ट्यूलिप के सिंदूरी फूलों के गुच्छे झूम रहे थे । इनके गहरे व चटक नारंगी रंग प्लास्टिक के नकली फूलों का आभास दे रहे थे । यू ही उग आए खरपतवारो पर भी गहरे जामुनी , नीले फूलों की छटा देखने लायक थी । हमारें शहरी गार्डन से अधिक फूल तो सड़क के दोनों तरफ की बेल और पेड़ों पर थे शायद इसलिए ही केरल में भिन्न भिन्न रंग के फूलों की रंगोली बनती है और महिलाएँ भी फूलों का शृंगार करती है ।
. यत्र तत्र फूलों से अटी पड़ी सड़के देख प्रकृति के सौतेले व्यवहार से शिकायत हुई । पटादी के फूलों से पेड़ लदे थे । चाय बागान की गझिन हरियाली में भी गुंजाइश निकाल झाड़ियों के बीच जमीन पर रेंगती नाज़ुक लताओं के जाल में छोटे छोटे पीले और गुलाबी रंग के असंख्य फूल परियों के देश से आये लगते थे । पारिझर के हथेली के आकार के कागज़ के खोमचों जैसे लम्बे गुलाबी फूल । दोपहर तक हम मलयाली नाम वाले "मट्टुपेट्टी डेम" पहुँच चुके थे । डेम कुछ खास आकर्षक नही था ।पर्यटकों को ध्यान में रख बोटिंग आदि की व्यवस्था थी । कान्हा जी को बोटिंग में पैडल मारने में लगने वाला पिछला श्रम याद था -- मम्मा मुझे बोटिंग में नही जाना । रतनपुर में पैडल मार मार के इतना थक गया था कि मन हो रहा था कि झील में कूद कर तैरकर बाहर आ जाऊ ।हम माँ बेटे का ध्यान ठेलों पर बिक रहे ताजा पाइन एप्पल स्लाइस और नारियल पानी पर था -- आओ रिज़वी आप भी पाइन एप्पल खाओ । रिज़वी ने झेंपते हुए मना कर दिया -- नई मैम अभी इधरी रसम-चावल खा लिया है मई (मैं) । आज में (मैं) बहुत परेशान हो गया ।मेरा फोन खराब हो गया ।आपका फोन देते तो थोड़ा फैमिली से बात करने का था । मेरी(मुझे) को फोन बिगड़ने के टेंशन हो गया । मैने पतिदेव को आवाज़ लगाई -- रिज़वी का फोन बिगड़ गया है। जरा देख लीजिए । पतिदेव की लैपटाप और मोबाइल में सिद्धहस्तता पर मुझे विश्वास था । फोन खोलने के 10 मिनिट के भीतर ही उन्होंने फोन ठीक कर उसके हाथ में थमा दिया -- रिज़वी खुशी से उछल पड़ा -- या लिल्हा । ओहो आपने तो मेरा फोन ठीक कर दिया। तुमको माल्लुम है, मेरा पूरा नम्बर था इसमें । मेरे को कितना टेंशन हो गया थी । रिज़वी ने मोबाइल में अपनी खूबसूरत पत्नी और बच्चें की तस्वीरें दिखाई । कान्हा के जितनी ही उम्र का उसका बेटा था । मेरा मन फिर बुझ गया यह जानकर कि दुनिया भर के बेगानों को केरल घुमाने वाला रिज़वी चाहकर भी अपने बच्चों को केरल नही घूमा पाया है । बातों ही बातों में पता चला कि 18 साल में शादी करने के बाद रिज़वी सऊदी अरब चला गया था । केरल में हर चौथा आदमी खाड़ी देशों में छोटी मोटी नौकरी करता है ।
रिज़वी वहाँ 10 साल गाढ़ी मेहनत की कमाई कर 6 साल पहले केरल लौटकर फर्नीचर का व्यवसाय शुरू किया था । अपने सरल स्वभाव की वजह से उधार के ग्राहकों ने धंधा डूबा दिया। पिछले चार साल से अपने मालिक की यह गाड़ी चलाकर परिवार का भरण पोषण कर रहा है । 9 लाख का बैंक लोन भी चुकाना है । सड़क पर नज़र जमाए स्टेरिंग घुमाते रिजवी ने फीकी हँसी के साथ कहा -- आदमी कुछ सोचता है मगर खुदा बन्दों के लिए कुछ और सोच के रखता है ।कहाँ में 6 नौकर रखा था कहाँ आज अपने मालिक का गाड़ी चला रहा हूँ । तुमकों माल्लुम ,में थोड़ा सा चालाक होता था तो आज आगे बढ़ गया होता अब तक । चलती कार में पल भर को उदासी पसर गयी ।मेरे पति ने शांत लहज़े में पूछा -- आगे बढ़ना किसको बोलते है रिज़वी ? बड़े बड़े बिजनेसमैन को गोली मार दी जाती है , कोई घाटे से आत्महत्या कर लेता है , किसी को पारिवारिक कलह है , कोई शरीर से लाचार हो गया है । जिंदगी की सबसे बड़ी सफलता खुश रहने की कला है ।तुम खुश हो या नही ? उलझे भावों में डूबे रिज़वी ने भंवर से उबर आने वाली सच्ची संतुष्टि के साथ कहा -- हाँ सर में खुश तो बहुत रहता हूँ । उदर सऊदी में था तो अपना देश बहोत याद आता था । वो लोग हम इंडियंस को सही ट्रीट नही करता ।इदर पैसा कम है मगर सर अपना जगह अपना होता है । ये घर पे मेरा बीवी और माँ का आपस में थोड़ा किटकिट रहता है बाकी खुदा ने मेरे मन में तसल्ली बहुत दिया है । देखो पइसा ऐसा चीज़ है कल मेरे पास था आज नही कल शायद फिर हो ।
माहौल फिर हल्का हो गया । "अब हम कहाँ जा रहे है ?" इस प्रश्न का उत्तर सिर्फ रिज़वी के पास होता था । रिज़वी के मालिक ने रिज़वी को हमारे हर दिन के शेड्यूल का कई पन्नों वाला एक मोटा पत्रा थमा दिया था । डेम से मायूस लौटते देख रिज़वी ने कहा अब हम लोग बहोत सुन्दर जगह जा रहा है । मैंने थकी आवाज़ में कहा --तुम कही न ले जाओ बस इन पहाड़ों पर ही गाड़ी चलाते रहो। कितने सुन्दर है ये । मौसम में वो आद्रता थी कि पेडों के मोटे तनों पर काई की मोटी मख़मली परत चढ़ गई थी । पहाड़ों में हर थोड़ी दूर पर हरा पानी लिए बड़ी बड़ी झील की तश्तरियाँ रखी थी । शांत झील को घेरे हुए पहाड़ की बुलन्दी को भी चुनौती देते आकाश चूमते यूकेलीप्ट्स के सीधे खड़े पेड़ । वीरान पहाड़ों पर लटकती इक्का दुक्का झोपड़ियां। जाने कौन लोग होंगे जो इन घरों में रहते होंगे ?? वो जो टोकरा दीवार से लटक रहा है क्या उसमें चाय की पत्तियाँ तोड़ी जाती है ??
"मम्मा देखो ये केरल के लोग कितने बुरे है । इतनी सुंदर जगह में भी पहाड़ पर मैंने स्कूल देखा था ।"कार के भीतर ठहाकों की वजह कान्हा की समझ से परे था । घने जंगलों के तिलस्म में डूबे पहाड़ , खुले चाय बागानों की चादरों वाले बीछे पहाड़, काली चट्टानों पर रिसते झरनों वाले वनस्पतिरहित पथरीले पहाड़ , गोल्फ के हरे मैदान जैसे हाथियों की चारागाह वाले पहाड़ , लबरेज़ झील को अंजुली में सहेजे पहाड़ । लगातार रूप बदलते पहाड़ किसी मायावी नायिका से लग रहे थे |( शेष यात्रा कल)

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