शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

तिरुपति बालाजी (वेंकटेश्ववर भगवान, तिरुमला) दर्शन

तिरुपति बालाजी (वेंकटेश्ववर भगवान, तिरुमला) दर्शन

तिरुपति बालाजी (वेंकटेश्ववर भगवान, तिरुमला) दर्शन





एक बहुत लम्बे इंतज़ार और लम्बे सफर के बाद हम आज उस जगह पर पहुंचे हुए थे, जहाँ हर दिन लाख लोग अपनी अपनी मुरादें लेकर आते रहते हैं लेकिन मैं यहाँ कोई मुराद या मन्नत लेकर नहीं आया था, मैं तो बस उस दिव्य जगह के दिव्य दर्शन के लिए यहाँ आया था। हर दिन सोचा करता था कि आखिर ऐसा क्या है उस जगह पर जहाँ हर दिन इतने सारे लोग जाते हैं और आज हम भी उसी जगह पर पहुंचे हुए हैं। शहरों की भाग दौड़ वाली जिंदगी से दूर यहाँ एक अलग ही शांति थी और इतने सारे लोग एक दूसरे से अनजान होते हुए भी अनजान नहीं दिख रहे थे। यहाँ एक साथ पूरे देश से आये हुए लोग देखे जा सकते हैं। सबकी अलग भाषा, अलग रहन सहन, अलग खान पान होते हुए भी यहाँ सब एक ही रंग में रंगे हुए नज़र आ रहे थे और वो रंग था भक्ति का। इस भीड़ में कुछ दूसरे देश के लोग भी दिखाई दे जाते थे और वो भी यहाँ आकर भक्ति के रंग में सराबोर थे। यहाँ आया हुआ हर व्यक्ति देश, राज्य, जाति, वर्ग, गरीब, अमीर को भूल कर बस भक्ति में लीन अपनी ही धुन में चला जा रहा था। यहाँ की स्थिति को देखकर मन में बस एक ही ख्याल आ रहा था कि काश हर जगह बस ऐसी ही शांति हो, जहाँ कोई किसी के आगे या पीछे न होकर बस एक साथ चल रहे हों। 

आइये अब आज की अपनी बात करते हैं। कल रात सोने से पहले हमने मोबाइल में सुबह 3 बजे का अलार्म लगाया था और 3 बजते ही अलार्म बजना आरंभ हो गया। अलार्म के साथ मेरी नींद भी खुल गई। सफर की थकान के कारण बेड से उठने का मन तो बिलकुल नहीं हो रहा था।  मैंने अलार्म बंद किया और फिर से सोने की कोशिश करने लगे। दुबारा नींद भी नहीं आ पाई थी कि 5 मिनट बाद दूसरे मोबाइल में भी अलार्म बजने लगा। अब तो दोनों मोबाइल ने अपने हाजिरी लगा दी तो उठना ही था। खैर जैसे तैसे उठे और सबको जगा कर मैं नहाने चला गया। पानी बिल्कुल ठंडा था, जो कि नहाने लायक नहीं था। खैर मैं नहा तो ठन्डे पानी से भी लेता पर एक लम्बे सफर पर निकलने के कारण ठन्डे पानी से नहीं नहाया कि कहीं तबियत खराब हो गई तो फिर घुमक्कड़ी का आनंद ही जाता रहेगा। अब नहाने के लिए गरम पानी की जरूरत थी जो बाहर लगे गीज़र से पूरी हो गई। अब हम जल्दी से नहा कर तैयार हुए। सबको तैयार होने के लिए कहकर मैं ये देखने के लिए बाहर निकल गया कि दर्शन के समय कैसे और किस रास्ते से जाया जाये।




अभी सुबह के 4 बजे थे और बाहर कोई मिल नहीं रहा था जिससे कि कुछ पूछा जाये।  करीब एक घंटे से ज्यादा सड़क पर इधर उधर भटकने के बाद मैं वापस कमरे पर आ गया। यहाँ आते हुए मैंने कल्याण कट्टा में लोगो को अपने केश दान करते (मुंडन कराते) हुए देखा तो मन में खयाल आया कि क्यों न हम भी मुंडन करवा ही लें। मेरे इस प्रस्ताव का पत्नी और माताजी ने समर्थन कर दिया। कल्याण कट्टा (जहाँ मुंडन होता है) गेस्ट हाउस (कल्याण चौल्ट्री) के सामने ही था। हम सब लोग मुंडन करवाने चले गए। यहाँ जाते ही हमें एक स्लिप और आधा ब्लेड दिया गया। स्लिप पर सीट की संख्या लिखी हुई थी और वहीं पर आपका मुंडन होगा जो संख्या स्लिप पर लिखी हुई थी। अंदर गया तो कई बड़े बड़े हॉल में मुंडन कर्मचारी बैठे हुए थे और मुंडन करवाने वाले की भीड़ लगी हुई थी। हम लोगों की बारी आने पर हम सबने भी मुंडन करवाया और उसके बाद गेस्ट हाउस आ गए। एक बार तो पहले नहा ही चुके थे और मुंडन करवाने के बाद फिर से नहाने की जरूरत थी तो सबने फिर से नहाया।

मुझे यहाँ 131 और 133 नम्बर का कमरा मिला था। हम मंदिर जाने के लिए निकलने ही वाले थे कि इसी दौरान 132 नम्बर कमरे में ठहरे हुए कुछ लोग आये तो पूछने पर पता चला कि वो लोग दर्शन करके आ रहे हैं और 16 घंटे के बाद उन लोगों ने दर्शन किया था। खैर मैं पहले ही 300 रुपये वाला दर्शन के लिए ऑनलाइन ही बुकिंग करवा रखा था जिसकी बुकिंग तिरुमला तिरुपति देवसंस्थानम की वेबसाइट https://ttdsevaonline.com पर होती है और साथ में 2 लडडू भी मिलते हैं। दर्शन की बुकिंग हर घंटे के हिसाब से होती है और मेरा 10 बजे के दर्शन के लिए बुकिंग थी और जिसके लिए 2 घंटे पहले ATC कार पार्किंग एरिया में रिपोर्ट करनी थी। अब तक 6:15 बज चुके थे और हम लोग मंदिर दर्शन के लिए गेस्ट हाउस से निकल गए तो पता चला कि 300 रूपये वाले दर्शन के लिए धोती जरूरी है। खैर हमने 3 धोतियां खरीदी और फिर कमरे में आकर धोती पहन कर फिर से मंदिर के लिए निकल पड़े। यहाँ पुरुषों के लिए धोती अनिवार्य है तो महिलाओं के लिए साड़ी या सलवार-कुरता अनिवार्य है। पश्चिमी सभ्यता के ड्रेस यहाँ निषेध है। मंदिर के पास जाकर कैमरा, मोबाइल, जूते-चप्पल रखने की मुसीबत से बचने के लिए हमने सब कुछ कमरे में ही छोड़ दिया और साथ में हर उस चीज़ को कमरे पर ही रहने दिया जो मंदिर में ले जाना निषेध था। बस दर्शन पर्ची और पहचान पत्र साथ में रखकर दर्शन के लिए निकले। पूछते पूछते हम 7:30 बजे ATC कार पार्किंग एरिया पहुँच गए।

ठीक 8 बजे अंदर जाने के लिए दरवाजा खोला गया और पर्ची देख देखकर सबको अंदर जाने दिया गया। कुछ आगे बढ़ने पर पर्ची के साथ साथ पहचान पत्र की जाँच करने के बाद ही आगे जाने दिया जा रहा था। कुछ आगे बढ़ने पर हमने देखा कि बड़े बड़े कई हॉल है जहाँ बैठ कर लोग दर्शन के लिए इंतजार कर रहे हैं। हर हॉल में करीब करीब 500-600 लोग थे और यहाँ सबके लिए खाने-पीने की पूरी व्यवस्था थी। जिस क्रम में हॉल में लोग बैठते है उसी क्रम के अनुसार उनको दर्शन के लिए भेजा जाता है। एक हॉल में बैठे लोगों को जब दर्शन के लिए भेजा जाता है तो उस खाली हुए हॉल में नए लोगों को बैठा दिया जाता है और यही क्रम चलता रहता है और 10-11 घंटे के इंतज़ार के बाद दर्शन की बारी आती है। मेरा 300 रुपये वाला बुकिंग था इसलिए मुझे कहीं इंतज़ार नहीं करना था और हम लोग आगे बढ़ते रहे आगे जाते जाते रास्ता सँकरा होता जा रहा था। वैसे ही सँकरे रास्ते से आगे बढे और कुछ आगे बढ़ने पर तिरुपति से तिरुमला तक पैदल आने वाले श्रद्धालुओं को इसी लाइन में मिला दिया गया तो भीड़ और ज्यादा हो गई। अब कुछ और आगे बढ़े तो यहाँ पर सुदर्शन लाइन (हॉल में बैठे लोगों)  को भी इसी लाइन में मिला दिया गया। अब इसका मतलब ये साफ है कि आप चाहे 1000 रूपये वाली पर्ची लो, या 300 वाली पर्ची या फिर चाहे फ्री वाली लाइन हो या तिरुपति से तिरुमला तक पैदल आये हो दर्शन सबको एक साथ ही करनी है बस फर्क ये है कि आपको घंटो तक इंतज़ार नहीं करना होता है और भीड़ में ज्यादा देर तक लाइन में रहना नहीं पड़ता है।

चलिए अब आगे बढ़ते हैं। थोड़ा और आगे बढ़ने पर हम मंदिर के मुख्य दरवाजे पर पहुंच गए। यहाँ एक ही दरवाजे से अंदर जाने और बाहर आने की प्रक्रिया चलती है। बाहर वाले को रोककर अंदर के लोगों को निकलने के बाद फिर अंदर जाने दिया जाता है। खैर लो जी हम मंदिर के अंदर भी पहुँच गए और धीरे धीरे गर्भ गृह वाले भवन में भी पहुँच गए, धीरे धीरे दर्शन के लिए लाइन आगे बढ़ रही थी और भगवान वेंकटेश्वर स्वामी के दर्शन कर रही थी। हमारी भी बारी आई और हमने भी भगवान्  वेंकटेश के दर्शन किये। करीब 12-15 फ़ीट की दूरी से भगवान्  वेंकटेश के दर्शन होते हैं और बस कुछ ही पल उनके सामने आप रुक सकते हैं, और ये कुछ ही पल बस सेकंड भर ही होता है और इस सेकंड भर में ही ऐसा प्रतीत होता है कि मैं मैं नहीं हूँ, बस सब कुछ भूलकर अपने आपको भगवान को समर्पित कर चुके हैं। हमारे दर्शन का समय 10 बजे का था लेकिन 9:30 बजे ही हमने दर्शन कर लिया।  दर्शन के बाद हम करीब 30 मिनट मंदिर प्रांगण में ही बैठे रहे। अब तक अंदर इतनी भीड़ हो गई थी कि मुझे जिसकी उम्मीद नहीं थी। भीड़ इतनी थी कि मंदिर से निकलने में करीब 30 मिनट का समय लगा।




मंदिर से निकलकर हम प्रसाद के लाइन में लग गए जहाँ सबको दही वाली खीर दी जा रही थी। प्रसाद ग्रहण करने के बाद हम लडडू लेने गए और लिए अपनी दर्शन पर्ची दिखाकर 6 लोगों के 12 लडडू लिया। ऑनलाइन दर्शन करने वाले लोगों को लडडू केवल 13 नंबर के काउंटर पर दिया जाता है और पैदल आने वाले और सुदर्शन लाइन से दर्शन करने वाले लोग किसी भी काउंटर से लडडू ले सकते हैं। वैसे एक बात तो है यहाँ के लडडू का कोई जवाब नहीं। लडडू लेने के बाद हम मंदिर परिसर और चीज़ो को देखने बाद करीब 11 बजे हम मेगा किचन की तरफ बढ़ गए। यहाँ एक साथ एक बार में हज़ार से ज्यादा लोग भोजन करते हैं। इतने लोगों के एक साथ भोजन करने की प्रक्रिया यहाँ पूरे दिन चलती है। एक तरफ से लोग आते है खाना खाकर दूसरे तरफ से निकलते जाते हैं। दूसरे लोगों के बैठने के पहले टेबल साफ करने की  प्रक्रिया है वो भी पलक झपकते ही होती है। खाना खाते खाते करीब 12 बज चुके थे। खाना खा चुकने के बाद या यूँ कहिये तो प्रसाद ग्रहण करने के बाद हम यहाँ से सीधे कमरे में आ गए। रास्ते में जगह जगह बैनर और बोर्ड पर पिछले महीने यहाँ दर्शन के लिए आये श्रद्धालुओं, अन्नप्रसादम ग्रहण करने वाले, लडडुओं की संख्या और मुंडन करवाने वाले लोगो की जानकारी उपलब्ध कराई गयी थी वो अपने आप में चौकाने वाली थी। 

दर्शन के लिए आये हुए श्रद्धालुओं की संख्या : 29,00,000 (29 लाख मतलब करीब 1 लाख लोग हर दिन)
अन्नप्रसादम ग्रहण करने वाले लोगों की संख्या : 78,00,000 (78 लाख )
मुंडन करवाने वाले लोगों की संख्या : 14,00,000 (14 लाख)
लडडुओं की संख्या : 1,50,00,000 (1.5 करोड़)

1 बजते बजते हम गेस्ट हाउस पहुंच गए और कुछ देर आराम करने करने बाद करीब 1:30 बजे हम फोटो खींचने और यहाँ के बाजार घूमने के लिए निकले। मंदिर से लौट कर आते हुए मुझे बरगद (तेलुगु में बरगद को मर्रीचटटु कहते हैं) का एक बहुत ही बड़ा पेड़ दिखा था और उसकी फोटो लेने के लिए हमें करीब 1 किलोमीटर जाना पड़ा। ये पेड़ जितने में फैला हुआ था कि इसकी छाया में करीब 500 लोग एक साथ बैठ सकते थे। हमने भी कुछ देर वहां उसकी छाया का आनंद लिया और कुछ सामान की खरीदारी करके वापस कमरे पर आ गए और रास्ते में एक जगह फिर से खाना भी खा लिया। अब तक 3:00 बजे चुके थे। अब हमें यहाँ से वापस तिरुपति जाना था। कुछ देर आराम करने और सामान पैक करते करते 4:30 बज गए। करीब 4:45 बजे हम गेस्ट हाउस से वापस जाने के लिए निकले और सीधा बस पड़ाव पर पहुंच गए। बस पड़ाव पर लोगों की भीड़ बहुत ही ज्यादा थी, फिर भी एक बस में मुझे सीट मिल गई। बस खुलने से पहले मैंने कंडक्टर से ये पूछ लेना उचित समझा कि मैंने आने-जाने का टिकट एक साथ ले लिया तो वो टिकट आपकी बस में मान्य है या नहीं। कंडक्टर के अनुसार मेरा टिकट तिरुमला आने वाले हर बस में मान्य था। वैसे तिरुपति से तिरुमला और तिरुमला से तिरुपति के लिए मंदिर समिति द्वारा संचालित फ्री बस सेवा भी उपलब्ध है, लेकिन फ्री होने कारण उसमे इतनी भीड़ होती है खड़े होकर भी यात्रा करना बहुत ही मुश्किल काम है। 




हमारी बस जल्दी ही बस यहाँ से तिरुपति के लिए प्रस्थान कर गई। जब रात में मैं तिरुपति से तिरुमला आ रहा था तो ऊपर से तिरुपति शहर ऐसा लग रहा था जैसे आकाश जमीन पर आ गया हो और इस समय पूरा तिरुपति शहर साफ दिख रहा था। इसकी खूबसूरती इस समय बिलकुल किसी सपने के शहर के जैसा लग रहा था। करीब एक घंटे के सफर के बाद 6:00 बजे बस तिरुपति रेलवे स्टेशन पहुँच गई। रेलवे स्टेशन के पास ही विष्णु निवासम में मैंने पहले से ही कमरा बुक कर रखा था। तिरुपति में मंदिर समिति के तीन गेस्ट हाउस हैं जिनके नाम माधवन, श्रीनिवासम और विष्णु निवासम, जिसमे से विष्णु निवासम तिरुपति रेलवे स्टेशन के सामने है। बस से उतरकर हम सीधा गेस्ट हाउस में गए और यहाँ मुझे चौथे मंज़िल पर 456 और 467 नंबर का कमरा मिला। कमरे में जाते ही सबने पहले रात की अधूरी नींद पूरी की और जब बादलों की गड़गड़ाहट की आवाज से आँख खुली तो 8 बज चुके थे और बाहर भारी बारिश हो रही थी। अब तो तिरुपति का बाजार भी घूम पाना मुश्किल था। खाने के लिए पता किया तो मालूम हुआ कि खाने का इंतज़ाम दूसरी मंज़िल पर है और तिरुमला की तरह यहाँ भी खाना फ्री है। हम लोग दूसरी मंज़िल पर जाकर एक बार अन्नप्रसादम ग्रहण किये (खाना खाये) और फिर अपने कमरे में आकर कल की तैयारी करके सोने की तैयारी में ही थे कि मेरे एक मित्र नरेंद्र शोलेकर जी का एक मैसेज आया और उस मैसेज के अनुसार मुझे अपनी कल की योजना में बदलाव करना पड़ा और पद्मावती मंदिर में देवी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

ऐसे तो कल के मेरी प्लांनिग के अनुसार कल सुबह उठकर तिरुपति का बाजार घूमना था और फिर 10 बजे की ट्रेन से चेन्नई और फिर रामेश्वरम लेकिन नयी योजना के अनुसार कल सबसे पहले पद्मावती देवी के दर्शन करना उसके बाद 10 बजे की ट्रेन से चेन्नई और फिर रामेश्वरम जाने का प्लान बना। इस पोस्ट में बस इतना ही, पद्मावती मंदिर की कहानी अगले पोस्ट में। बस जल्दी ही मिलते है अगले पोस्ट के साथ। 



कुछ बातें तिरुपति बालाजी के बारे में 


तिरुमाला पर्वत पर स्थित भगवान बालाजी के मंदिर की महत्ता कौन नहीं जानता। भगवान व्यंकटेश स्वामी को संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी माना जाता है। हर साल करोड़ों लोग इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं। साल के बारह महीनों में एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब यहाँ वेंकटेश्वरस्वामी के दर्शन करने के लिए भक्तों का ताँता न लगा हो। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान भारत के सबसे अधिक तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र है। इसके साथ ही इसे विश्व के सर्वाधिक धनी धार्मिक स्थानों में से भी एक माना जाता है।

मंदिर के विषय में अनुश्रुति 
प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिर‍ि' कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है,जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है।
वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार, 11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ाई की थी। प्रभु श्रीनिवास (वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वे 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई।
वैकुंठ एकादशी के अवसर पर लोग यहाँ पर प्रभु के दर्शन के लिए आते हैं,जहाँ पर आने के पश्चात उनके सभी पाप धुल जाते हैं। मान्यता है कि यहाँ आने के पश्चात व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। 

मंदिर का इतिहास
माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है, जब काँच‍ीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था, परंतु 15 सदी के विजयनगर वंश के शासन के पश्चात भी इस मंदिर की ख्याति सीमित रही। 15 सदी के पश्चात इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैलनी शुरू हो गई। 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत इस मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला। 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति 'तिरुमाला-तिरुपति' के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया। आंध्रप्रदेश के राज्य बनने के पश्चात इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्रप्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया।

मुख्य मंदिर
श्री वेंकटेश्वर का यह पवित्र व प्राचीन मंदिर पर्वत की वेंकटाद्रि नामक सातवीं चोटी पर स्थित है, जो श्री स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे स्थित है। इसी कारण यहाँ पर बालाजी को भगवान वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह भारत के उन चुनिंदा मंदिरों में से एक है, जिसके पट सभी धर्मानुयायियों के लिए खुले हुए हैं। पुराण व अल्वर के लेख जैसे प्राचीन साहित्य स्रोतों के अनुसार कल‍ियुग में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात ही मुक्ति संभव है। पचास हजार से भी अधिक श्रद्धालु इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं। इन तीर्थयात्रियों की देखरेख पूर्णतः टीटीडी के संरक्षण में है।

मंदिर की चढ़ाई
पैदल यात्रियों हेतु पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम नामक एक विशेष मार्ग बनाया गया है। इसके द्वारा प्रभु तक पहुँचने की चाह की पूर्ति होती है। साथ ही अलिपिरी से तिरुमाला के लिए भी एक मार्ग है।

केशदान
इसके अंतर्गत श्रद्धालु प्रभु को अपने केश समर्पित करते हैं जिससे अभिप्राय है कि वे केशों के साथ अपना दंभ व घमंड ईश्वर को समर्पित करते हैं। पुराने समय में यह संस्कार घरों में ही नाई के द्वारा संपन्न किया जाता था, पर समय के साथ-साथ इस संस्कार का भी केंद्रीकरण हो गया और मंदिर के पास स्थित 'कल्याण कट्टा' नामक स्थान पर यह सामूहिक रूप से संपन्न किया जाने लगा। अब सभी नाई इस स्थान पर ही बैठते हैं। केशदान के पश्चात यहीं पर स्नान करते हैं और फिर पुष्करिणी में स्नान के पश्चात मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते हैं। 
सर्वदर्शनम
सर्वदर्शनम से अभिप्राय है 'सभी के लिए दर्शन'। सर्वदर्शनम के लिए प्रवेश द्वार वैकुंठम काम्प्लेक्स है। वर्तमान में टिकट लेने के लिए यहाँ कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था है। यहाँ पर निःशुल्क व सशुल्क दर्शन की भी व्यवस्था है। साथ ही विकलांग लोगों के लिए 'महाद्वारम' नामक मुख्य द्वार से प्रवेश की व्यवस्था है, जहाँ पर उनकी सहायता के लिए सहायक भी होते हैं।

प्रसादम
यहाँ पर प्रसाद के रूप में अन्न प्रसाद की व्यवस्था है जिसके अंतर्गत चरणामृत, मीठी पोंगल, दही-चावल जैसे प्रसाद तीर्थयात्रियों को दर्शन के पश्चात दिया जाता है।

लड्डू
पनयारम यानी लड्डू मंदिर के बाहर बेचे जाते हैं, जो यहाँ पर प्रभु के प्रसाद रूप में चढ़ाने के लिए खरीदे जाते हैं। इन्हें खरीदने के लिए पंक्तियों में लगकर टोकन लेना पड़ता है। श्रद्धालु दर्शन के उपरांत लड्डू मंदिर परिसर के बाहर से खरीद सकते हैं।

ब्रह्मोत्सव
तिरुपति का सबसे प्रमुख पर्व 'ब्रह्मोत्सवम' है जिसे मूलतः प्रसन्नता का पर्व माना जाता है। नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व साल में एक बार तब मनाया जाता है, जब कन्या राशि में सूर्य का आगमन होता है (सितंबर, अक्टूबर)। इसके साथ ही यहाँ पर मनाए जाने वाले अन्य पर्व हैं - वसंतोत्सव, तपोत्सव, पवित्रोत्सव, अधिकामासम आदि।

विवाह संस्कार
यहाँ पर एक 'पुरोहित संघम' है, जहाँ पर विभिन्न संस्कारों औऱ रिवाजों को संपन्न किया जाता है। इसमें से प्रमुख संस्कार विवाह संस्कार, नामकरण संस्कार, उपनयन संस्कार आदि संपन्न किए जाते हैं। यहाँ पर सभी संस्कार उत्तर व दक्षिण भारत के सभी रिवाजों के अनुसार संपन्न किए जाते हैं।

रहने की व्यवस्था
तिरुमाला में मंदिर के आसपास रहने की काफी अच्छी व्यवस्था है। विभिन्न श्रेणियों के होटल व धर्मशाला यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इनकी पहले से बुकिंग टीटीडी के केंद्रीय कार्यालय से कराई जा सकती है। वैसे आजकल तो इंटरनेट का जमाना है तो इसकी बुकिंग तिरुमला-तिरुपति देवसंस्थानम की वेबसाइट पर हो जाती है और बुकिंग 2-3 माह पहले करवानी पड़ती है। 

कैसे पहुँचें?
तिरुपति सड़क और रेलमार्ग द्वारा देश के सभी शहरों से जुड़ा है। देश के बड़े शहरों से तिरुपति तक पहुँचने के लिए सीधी रेल सेवा है। इसके अलावा जिन शहरों से तिरुपति तक रेल सेवा नहीं है वो चेन्नई होते हुए तिरुपति जा  सकते हैं। चेन्नई से तिरुपति की दूरी करीब 150 किलोमीटर है। चेन्नई से तिरुपति जाने के लिए बसें भी बहुतयात में उपलब्ध है। तिरुपति से तिरुमला तक बस से या पैदल जाना होता है। 

मंदिर में दर्शन 
भगवान वेंकटेश्वर मंदिर में दर्शन चार तरह से होते हैं :
1. ऑनलाइन बुकिंग द्वारा जिसकी बुकिंग https://ttdsevaonline.com पर दो से तीन महीने पहले करनी होती है और दिए गए तारीख को आप दिए समय से 2 घण्टे पहले लाइन में लगना होता है और दर्शन करने में करीब 2 घंटे का वक़्त लगता है। इसकी बुकिंग भी हर घंटे के हिसाब से होती है। इस दर्शन की बुकिंग के लिए 300 रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से बुकिंग के समय ऑनलाइन भुगतान करना पड़ता है और  दर्शन के बाद प्रसाद के रूप में 2 लडडू मुफ्त। 
2. अगर आपने ऑनलाइन  बुकिंग नहीं तो तिरुमला स्थित किसी भी बैंक में 1000 रूपए भुगतान करके 300 रूपए वाला कूपन लेकर दिए गए समय से 2 घण्टे पहले लाइन में लगे और 2 घंटे में दर्शन करें। 
3. फ्री दर्शन लाइन इसे सुदर्शन लाइन कहते हैं। यह 12 से 14 घण्टे हॉल में बैठने के बाद दर्शन के लिए छोड़ते हैं। 
4. अगर आप ट्रेकिंग पथ से तिरुपति से तिरुम्माला जाये तो 50 रूपये के पर्ची कटवाना पड़ता है और करीब 10 किमी की आसान चढ़ाई है और दर्शन मात्र 3 घंटे में होंगे और प्रसाद के रूप में 1 लड्डू फ्री। जब आप तिरुपति से तिरुम्माला पैदल जा रहे होते है तो ये यात्री पैदल ही जा रहा है या नहीं ये देखने के लिए पूरे रास्ते में 3-4 जगहों पर चेकिंग होती है। 

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