शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018
बुधवार, 21 फ़रवरी 2018
तिरुपति की दूरी करीब 150 किलोमीटर है। चेन्नई से तिरुपति जाने के लिए बसें भी बहुतयात में उपलब्ध है
तिरुपति बालाजी
तिरुमाला पर्वत पर स्थित भगवान बालाजी के मंदिर की महत्ता कौन नहीं जानता। भगवान व्यंकटेश स्वामी को संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी माना जाता है। हर साल करोड़ों लोग इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं। साल के बारह महीनों में एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब यहाँ वेंकटेश्वरस्वामी के दर्शन करने के लिए भक्तों का ताँता न लगा हो। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान भारत के सबसे अधिक तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र है। इसके साथ ही इसे विश्व के सर्वाधिक धनी धार्मिक स्थानों में से भी एक माना जाता है।
मंदिर की चढ़ाई
पैदल यात्रियों हेतु पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम नामक एक विशेष मार्ग बनाया गया है। इसके द्वारा प्रभु तक पहुँचने की चाह की पूर्ति होती है। साथ ही अलिपिरी से तिरुमाला के लिए भी एक मार्ग है।
पैदल यात्रियों हेतु पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम नामक एक विशेष मार्ग बनाया गया है। इसके द्वारा प्रभु तक पहुँचने की चाह की पूर्ति होती है। साथ ही अलिपिरी से तिरुमाला के लिए भी एक मार्ग है।
केशदान
इसके अंतर्गत श्रद्धालु प्रभु को अपने केश समर्पित करते हैं जिससे अभिप्राय है कि वे केशों के साथ अपना दंभ व घमंड ईश्वर को समर्पित करते हैं। पुराने समय में यह संस्कार घरों में ही नाई के द्वारा संपन्न किया जाता था, पर समय के साथ-साथ इस संस्कार का भी केंद्रीकरण हो गया और मंदिर के पास स्थित 'कल्याण कट्टा' नामक स्थान पर यह सामूहिक रूप से संपन्न किया जाने लगा। अब सभी नाई इस स्थान पर ही बैठते हैं। केशदान के पश्चात यहीं पर स्नान करते हैं और फिर पुष्करिणी में स्नान के पश्चात मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते हैं।
इसके अंतर्गत श्रद्धालु प्रभु को अपने केश समर्पित करते हैं जिससे अभिप्राय है कि वे केशों के साथ अपना दंभ व घमंड ईश्वर को समर्पित करते हैं। पुराने समय में यह संस्कार घरों में ही नाई के द्वारा संपन्न किया जाता था, पर समय के साथ-साथ इस संस्कार का भी केंद्रीकरण हो गया और मंदिर के पास स्थित 'कल्याण कट्टा' नामक स्थान पर यह सामूहिक रूप से संपन्न किया जाने लगा। अब सभी नाई इस स्थान पर ही बैठते हैं। केशदान के पश्चात यहीं पर स्नान करते हैं और फिर पुष्करिणी में स्नान के पश्चात मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते हैं।
सर्वदर्शनम
सर्वदर्शनम से अभिप्राय है 'सभी के लिए दर्शन'। सर्वदर्शनम के लिए प्रवेश द्वार वैकुंठम काम्प्लेक्स है। वर्तमान में टिकट लेने के लिए यहाँ कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था है। यहाँ पर निःशुल्क व सशुल्क दर्शन की भी व्यवस्था है। साथ ही विकलांग लोगों के लिए 'महाद्वारम' नामक मुख्य द्वार से प्रवेश की व्यवस्था है, जहाँ पर उनकी सहायता के लिए सहायक भी होते हैं।
सर्वदर्शनम से अभिप्राय है 'सभी के लिए दर्शन'। सर्वदर्शनम के लिए प्रवेश द्वार वैकुंठम काम्प्लेक्स है। वर्तमान में टिकट लेने के लिए यहाँ कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था है। यहाँ पर निःशुल्क व सशुल्क दर्शन की भी व्यवस्था है। साथ ही विकलांग लोगों के लिए 'महाद्वारम' नामक मुख्य द्वार से प्रवेश की व्यवस्था है, जहाँ पर उनकी सहायता के लिए सहायक भी होते हैं।
प्रसादम
यहाँ पर प्रसाद के रूप में अन्न प्रसाद की व्यवस्था है जिसके अंतर्गत चरणामृत, मीठी पोंगल, दही-चावल जैसे प्रसाद तीर्थयात्रियों को दर्शन के पश्चात दिया जाता है।
यहाँ पर प्रसाद के रूप में अन्न प्रसाद की व्यवस्था है जिसके अंतर्गत चरणामृत, मीठी पोंगल, दही-चावल जैसे प्रसाद तीर्थयात्रियों को दर्शन के पश्चात दिया जाता है।
लड्डू
पनयारम यानी लड्डू मंदिर के बाहर बेचे जाते हैं, जो यहाँ पर प्रभु के प्रसाद रूप में चढ़ाने के लिए खरीदे जाते हैं। इन्हें खरीदने के लिए पंक्तियों में लगकर टोकन लेना पड़ता है। श्रद्धालु दर्शन के उपरांत लड्डू मंदिर परिसर के बाहर से खरीद सकते हैं।
पनयारम यानी लड्डू मंदिर के बाहर बेचे जाते हैं, जो यहाँ पर प्रभु के प्रसाद रूप में चढ़ाने के लिए खरीदे जाते हैं। इन्हें खरीदने के लिए पंक्तियों में लगकर टोकन लेना पड़ता है। श्रद्धालु दर्शन के उपरांत लड्डू मंदिर परिसर के बाहर से खरीद सकते हैं।
ब्रह्मोत्सव
तिरुपति का सबसे प्रमुख पर्व 'ब्रह्मोत्सवम' है जिसे मूलतः प्रसन्नता का पर्व माना जाता है। नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व साल में एक बार तब मनाया जाता है, जब कन्या राशि में सूर्य का आगमन होता है (सितंबर, अक्टूबर)। इसके साथ ही यहाँ पर मनाए जाने वाले अन्य पर्व हैं - वसंतोत्सव, तपोत्सव, पवित्रोत्सव, अधिकामासम आदि।
तिरुपति का सबसे प्रमुख पर्व 'ब्रह्मोत्सवम' है जिसे मूलतः प्रसन्नता का पर्व माना जाता है। नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व साल में एक बार तब मनाया जाता है, जब कन्या राशि में सूर्य का आगमन होता है (सितंबर, अक्टूबर)। इसके साथ ही यहाँ पर मनाए जाने वाले अन्य पर्व हैं - वसंतोत्सव, तपोत्सव, पवित्रोत्सव, अधिकामासम आदि।
विवाह संस्कार
यहाँ पर एक 'पुरोहित संघम' है, जहाँ पर विभिन्न संस्कारों औऱ रिवाजों को संपन्न किया जाता है। इसमें से प्रमुख संस्कार विवाह संस्कार, नामकरण संस्कार, उपनयन संस्कार आदि संपन्न किए जाते हैं। यहाँ पर सभी संस्कार उत्तर व दक्षिण भारत के सभी रिवाजों के अनुसार संपन्न किए जाते हैं।
यहाँ पर एक 'पुरोहित संघम' है, जहाँ पर विभिन्न संस्कारों औऱ रिवाजों को संपन्न किया जाता है। इसमें से प्रमुख संस्कार विवाह संस्कार, नामकरण संस्कार, उपनयन संस्कार आदि संपन्न किए जाते हैं। यहाँ पर सभी संस्कार उत्तर व दक्षिण भारत के सभी रिवाजों के अनुसार संपन्न किए जाते हैं।
रहने की व्यवस्था
तिरुमाला में मंदिर के आसपास रहने की काफी अच्छी व्यवस्था है। विभिन्न श्रेणियों के होटल व धर्मशाला यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इनकी पहले से बुकिंग टीटीडी के केंद्रीय कार्यालय से कराई जा सकती है। वैसे आजकल तो इंटरनेट का जमाना है तो इसकी बुकिंग तिरुमला-तिरुपति देवसंस्थानम की वेबसाइट पर हो जाती है और बुकिंग 2-3 माह पहले करवानी पड़ती है।
तिरुमाला में मंदिर के आसपास रहने की काफी अच्छी व्यवस्था है। विभिन्न श्रेणियों के होटल व धर्मशाला यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इनकी पहले से बुकिंग टीटीडी के केंद्रीय कार्यालय से कराई जा सकती है। वैसे आजकल तो इंटरनेट का जमाना है तो इसकी बुकिंग तिरुमला-तिरुपति देवसंस्थानम की वेबसाइट पर हो जाती है और बुकिंग 2-3 माह पहले करवानी पड़ती है।
कैसे पहुँचें?
तिरुपति सड़क और रेलमार्ग द्वारा देश के सभी शहरों से जुड़ा है। देश के बड़े शहरों से तिरुपति तक पहुँचने के लिए सीधी रेल सेवा है। इसके अलावा जिन शहरों से तिरुपति तक रेल सेवा नहीं है वो चेन्नई होते हुए तिरुपति जा सकते हैं। चेन्नई से तिरुपति की दूरी करीब 150 किलोमीटर है। चेन्नई से तिरुपति जाने के लिए बसें भी बहुतयात में उपलब्ध है। तिरुपति से तिरुमला तक बस से या पैदल जाना होता है।
तिरुपति सड़क और रेलमार्ग द्वारा देश के सभी शहरों से जुड़ा है। देश के बड़े शहरों से तिरुपति तक पहुँचने के लिए सीधी रेल सेवा है। इसके अलावा जिन शहरों से तिरुपति तक रेल सेवा नहीं है वो चेन्नई होते हुए तिरुपति जा सकते हैं। चेन्नई से तिरुपति की दूरी करीब 150 किलोमीटर है। चेन्नई से तिरुपति जाने के लिए बसें भी बहुतयात में उपलब्ध है। तिरुपति से तिरुमला तक बस से या पैदल जाना होता है।
मंदिर में दर्शन
भगवान वेंकटेश्वर मंदिर में दर्शन चार तरह से होते हैं :
1. ऑनलाइन बुकिंग द्वारा जिसकी बुकिंग https://ttdsevaonline.com पर दो से तीन महीने पहले करनी होती है और दिए गए तारीख को आप दिए समय से 2 घण्टे पहले लाइन में लगना होता है और दर्शन करने में करीब 2 घंटे का वक़्त लगता है। इसकी बुकिंग भी हर घंटे के हिसाब से होती है। इस दर्शन की बुकिंग के लिए 300 रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से बुकिंग के समय ऑनलाइन भुगतान करना पड़ता है और दर्शन के बाद प्रसाद के रूप में 2 लडडू मुफ्त।
2. अगर आपने ऑनलाइन बुकिंग नहीं तो तिरुमला स्थित किसी भी बैंक में 1000 रूपए भुगतान करके 300 रूपए वाला कूपन लेकर दिए गए समय से 2 घण्टे पहले लाइन में लगे और 2 घंटे में दर्शन करें।
3. फ्री दर्शन लाइन इसे सुदर्शन लाइन कहते हैं। यह 12 से 14 घण्टे हॉल में बैठने के बाद दर्शन के लिए छोड़ते हैं।
4. अगर आप ट्रेकिंग पथ से तिरुपति से तिरुम्माला जाये तो 50 रूपये के पर्ची कटवाना पड़ता है और करीब 10 किमी की आसान चढ़ाई है और दर्शन मात्र 3 घंटे में होंगे और प्रसाद के रूप में 1 लड्डू फ्री। जब आप तिरुपति से तिरुम्माला पैदल जा रहे होते है तो ये यात्री पैदल ही जा रहा है या नहीं ये देखने के लिए पूरे रास्ते में 3-4 जगहों पर चेकिंग होती है।
भगवान वेंकटेश्वर मंदिर में दर्शन चार तरह से होते हैं :
1. ऑनलाइन बुकिंग द्वारा जिसकी बुकिंग https://ttdsevaonline.com पर दो से तीन महीने पहले करनी होती है और दिए गए तारीख को आप दिए समय से 2 घण्टे पहले लाइन में लगना होता है और दर्शन करने में करीब 2 घंटे का वक़्त लगता है। इसकी बुकिंग भी हर घंटे के हिसाब से होती है। इस दर्शन की बुकिंग के लिए 300 रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से बुकिंग के समय ऑनलाइन भुगतान करना पड़ता है और दर्शन के बाद प्रसाद के रूप में 2 लडडू मुफ्त।
2. अगर आपने ऑनलाइन बुकिंग नहीं तो तिरुमला स्थित किसी भी बैंक में 1000 रूपए भुगतान करके 300 रूपए वाला कूपन लेकर दिए गए समय से 2 घण्टे पहले लाइन में लगे और 2 घंटे में दर्शन करें।
3. फ्री दर्शन लाइन इसे सुदर्शन लाइन कहते हैं। यह 12 से 14 घण्टे हॉल में बैठने के बाद दर्शन के लिए छोड़ते हैं।
4. अगर आप ट्रेकिंग पथ से तिरुपति से तिरुम्माला जाये तो 50 रूपये के पर्ची कटवाना पड़ता है और करीब 10 किमी की आसान चढ़ाई है और दर्शन मात्र 3 घंटे में होंगे और प्रसाद के रूप में 1 लड्डू फ्री। जब आप तिरुपति से तिरुम्माला पैदल जा रहे होते है तो ये यात्री पैदल ही जा रहा है या नहीं ये देखने के लिए पूरे रास्ते में 3-4 जगहों पर चेकिंग होती है।
शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018
सिर दर्द को दूर करने के लिए आवश्यक है
सिर दर्द को दूर करने के लिए आवश्यक है कि योग व आयुर्वेद का अपने जीवन में अपनाये..अनुलोम विलोम, भ्रामरी करें और फिर धयान 10 मिनट तक करना चाहिए! अयूर्वैदिक दवाई ब्रामी वटी, मेधा वटी, पथ्य आधि काड़ा, Sarswtaaristm, लें तो जरूर लाभ होगा! प्राकृतिक चिकित्सा
नाक के दो हिस्से हैं दायाँ स्वर और बायां स्वरजिससे हम सांस लेते और छोड़ते हैं,पर यह बिलकुलअलग – अलग असर डालते हैं और आप फर्क महसूस करसकते हैं |दाहिना नासिका छिद्र “सूर्य” औरबायां नासिका छिद्र “चन्द्र” के लक्षणको दर्शाता है या प्रतिनिधित्व करता है |सरदर्द के दौरान, दाहिने नासिका छिद्रको बंद करें और बाएं से सांस लें |और बस ! पांच मिनट में आपका सरदर्द “गायब” हैना आसान ?? और यकीन मानिए यहउतना ही प्रभावकारी भी है..===========================अगर आप थकान महसूस कर रहे हैं तो बसइसका उल्टा करें…यानि बायीं नासिका छिद्र को बंद करें औरदायें से सांस लें ,और बस ! थोड़ी ही देर में“तरोताजा” महसूस करें |===========================दाहिना नासिका छिद्र “गर्म प्रकृति”रखता है और बायां “ठंडी प्रकृति”अधिकांश महिलाएं बाएं और पुरुष दाहिनेनासिका छिद्र से सांस लेते हैं और तदनरूपक्रमशः ठन्डे और गर्म प्रकृति के होते हैं सूर्य औरचन्द्रमा की तरह |================प्रातः काल में उठते समय अगर आपबायीं नासिका छिद्र से सांस लेने में बेहतरमहसूस कर रहे हैं तो आपको थकान जैसा महसूसहोगा ,तो बस बायीं नासिका छिद्र को बंदकरें, दायीं से सांस लेने का प्रयास करें औरतरोताजा हो जाएँ |================अगर आप प्रायः सरदर्द से परेशान रहते हैं तो इसेआजमायें ,दाहिने को बंद करबायीं नासिका छिद्र से सांस लेंबस इसे नियमित रूप से एक महिना करें औरस्वास्थ्य लाभ लें |==============तो बस इन्हें आजमाइए और बिना दवाओं के स्वस्थमहसूस करे
सर दर्द से राहत के लिए
नाक के दो हिस्से हैं दायाँ स्वर और बायां स्वरजिससे हम सांस लेते और छोड़ते हैं,पर यह बिलकुलअलग – अलग असर डालते हैं और आप फर्क महसूस करसकते हैं |दाहिना नासिका छिद्र “सूर्य” औरबायां नासिका छिद्र “चन्द्र” के लक्षणको दर्शाता है या प्रतिनिधित्व करता है |सरदर्द के दौरान, दाहिने नासिका छिद्रको बंद करें और बाएं से सांस लें |और बस ! पांच मिनट में आपका सरदर्द “गायब” हैना आसान ?? और यकीन मानिए यहउतना ही प्रभावकारी भी है..===========================अगर आप थकान महसूस कर रहे हैं तो बसइसका उल्टा करें…यानि बायीं नासिका छिद्र को बंद करें औरदायें से सांस लें ,और बस ! थोड़ी ही देर में“तरोताजा” महसूस करें |===========================दाहिना नासिका छिद्र “गर्म प्रकृति”रखता है और बायां “ठंडी प्रकृति”अधिकांश महिलाएं बाएं और पुरुष दाहिनेनासिका छिद्र से सांस लेते हैं और तदनरूपक्रमशः ठन्डे और गर्म प्रकृति के होते हैं सूर्य औरचन्द्रमा की तरह |================प्रातः काल में उठते समय अगर आपबायीं नासिका छिद्र से सांस लेने में बेहतरमहसूस कर रहे हैं तो आपको थकान जैसा महसूसहोगा ,तो बस बायीं नासिका छिद्र को बंदकरें, दायीं से सांस लेने का प्रयास करें औरतरोताजा हो जाएँ |================अगर आप प्रायः सरदर्द से परेशान रहते हैं तो इसेआजमायें ,दाहिने को बंद करबायीं नासिका छिद्र से सांस लेंबस इसे नियमित रूप से एक महिना करें औरस्वास्थ्य लाभ लें |==============तो बस इन्हें आजमाइए और बिना दवाओं के स्वस्थमहसूस करे
सर दर्द से राहत के लिए
1 . तेज़ पत्ती की काली चाय में निम्बू का रस निचोड़ कर पीने से सर दर्द में अत्यधिक लाभ होता है .
2 . नारियल पानी में या चावल धुले पानी में सौंठ पावडर का लेप बनाकर उसे सर पर लेप करने भी सर दर्द में आराम पहुंचेगा .
3 . सफ़ेद चन्दन पावडर को चावल धुले पानी में घिसकर उसका लेप लगाने से भी फायेदा होगा .
4 . सफ़ेद सूती का कपडा पानी में भिगोकर माथे पर रखने से भी आराम मिलता है .
5 . लहसुन पानी में पीसकर उसका लेप भी सर दर्द में आरामदायक होता है .
6 . लाल तुलसी के पत्तों को कुचल कर उसका रस दिन में माथे पर 2, 3 बार लगाने से भी दर्द में राहत देगा .
7 . चावल धुले पानी में जायेफल घिसकर उसका लेप लगाने से भी सर दर्द में आराम देगा .
8 . हरा धनिया कुचलकर उसका लेप लगाने से भी बहुत आराम मिलेगा .
9 . सफ़ेद सूती कपडे को सिरके में भिगोकर माथे पर रखने से भी दर्द में राहत मिलेगी
बुधवार, 14 फ़रवरी 2018
नाथों के नाथ केदारनाथ, हर हर महादेव
नाथों के नाथ केदारनाथ, हर हर महादेव
अब जबकि केदारनाथ के कपाट खुलने की तिथि की घोषणा हो चुकी है तो मैं केदारनाथ के दर्शनों को जाने वाले शिवभक्तों के लिए छोटी सी जरूरी जानकारी प्रस्तुत कर रहा हूं। उम्मीद है आपको पसंद आएगी।
*1. केदारनाथ क्यों जाएं?*
केदारनाथ जाने की कई वजहें हो सकती हैं जिनमें पहली वजह धार्मिक ही है। केदारनाथ एक पवित्र तीर्थ स्थल है जहां भगवान शंकर का ग्यारहवां ज्योतिर्लिंग स्थापित है। यदि आप धार्मिक वजह से न भी आएं तो प्राकृतिक नजारों को देखने के लिए यहां आ सकते हैं, पर मौज मस्ती के उद्देश्य से यहां कभी नहीं आएं।
केदारनाथ जाने की कई वजहें हो सकती हैं जिनमें पहली वजह धार्मिक ही है। केदारनाथ एक पवित्र तीर्थ स्थल है जहां भगवान शंकर का ग्यारहवां ज्योतिर्लिंग स्थापित है। यदि आप धार्मिक वजह से न भी आएं तो प्राकृतिक नजारों को देखने के लिए यहां आ सकते हैं, पर मौज मस्ती के उद्देश्य से यहां कभी नहीं आएं।
*2. केदारनाथ कैसे जाएं?*
केदारनाथ की यात्रा सही मायने में हरिद्वार या ऋषिकेश से आरंभ होती है। हरिद्वार देश के सभी बड़े और प्रमुख शहरो से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। हरिद्वार तक आप ट्रेन से आ सकते है। यहाँ से आगे जाने के लिए आप चाहे तो टैक्सी बुक कर सकते हैं या बस से भी जा सकते हैं। हरिद्वार से सोनप्रयाग 235 किलोमाटर और सोनप्रयाग से गौरीकुंड 5 किलोमाटर आप सड़क मार्ग से किसी भी प्रकार की गाड़ी से जा सकते है। इससे आगे का 16 किलोमाटर का रास्ता आपको पैदल ही चलना होगा या आप पालकी या घोडा से भी जा सकते हैं। रास्ता भी बहुत बहुत संभल कर चलने वाला है। हरिद्वार या ऋषिकेश में से आप जहाँ से भी यात्रा आरम्भ करें गौरीकुंड तक पहुँचने में 2 दिन लें। आप रात्रि विश्राम श्रीनगर (गढ़वाल) या रुद्रप्रयाग में करें और अगले दिन गौरीकुंड जाएं। यदि आप एक दिन में गौरीकुंड चले जाते हैं तो इस पहाड़ी रास्ते पर आप इतना अधिक थक जायेगें कि अगले दिन प्रतिकूल मौसम वाले जगह में गौरीकुंड से केदारनाथ की चढ़ाई चढ़ने में बहुत ही दिक्कत महसूस करेंगे। अच्छा यही होगा आप 2 दिन का समय लें ऐसा मेरा मानना है और मेरा अनुभव भी है। हरिद्वार के रास्ते में आपको बहुत ऐसे स्थान मिलेंगे जहाँ आप रात में रुक सकते हैं। पर इन जगहों में श्रीनगर और रुद्रप्रयाग लगभग आधी दुरी पर है। आप चाहे तो गुप्तकाशी में भी रुक सकते हैं और यदि आप पहले दिन हरिद्वार या ऋषिकेश से गुप्तकाशी तक पहुँच जाते हैं तो अगले दिन गौरीकुंड में रुकने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि गुप्तकाशी से गौरीकुंड 1 से 1ः30 घंटे का ही रास्ता है। आप अपना सामान होटल या गेस्ट हाउस में लाॅकर रूम में रखवाकर गुप्तकाशी से सुबह जल्दी 6 बजे तक निकल जाएँ और 8 बजे तक गौरीकुंड से चढ़ाई करना शुरू कर दें। शाम तक केदारनाथ पहुंचे दर्शन करे और रात में केदारनाथ में रुकें। यदि चाहे तो सुबह फिर से दर्शन करे और फिर वापस गौरीकुंड आ जाये और फिर गौरीकुंड से गुप्तकाशी आकर रात में रुकें। यदि आप पहले दिन श्रीनगर या रुदप्रयाग में रुकते हैं तो अगले दिन आप सारा सामान साथ में ले जाये और गौरीकुंड तक पहुचे और रात में गौरीकुंड में ठहरें। और फिर उसके अगले दिन सामान लाॅकर रूम में रखकर सुबह 5 बजे चढ़ाई शुरू कर दें। केदारनाथ पहुँच कर दर्शन करे फिर रात में रुकें या वापस गौरीकुंड वापस आ जाये। पर मेरा तो ये मानना है कि यदि आप केदारनाथ जाते है तो भोलेनाथ की उस धरती पर एक रात अवश्य गुजारें। एक बात और गौरीकुंड से केदारनाथ के रास्ते में दोपहर बाद मौसम खराब हो जाता है जो करीब 2 से 3 बजे तक खराब ही रहता है और ये कोई एक या दो दिन नहीं बल्कि हर दिन होता है।
केदारनाथ की यात्रा सही मायने में हरिद्वार या ऋषिकेश से आरंभ होती है। हरिद्वार देश के सभी बड़े और प्रमुख शहरो से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। हरिद्वार तक आप ट्रेन से आ सकते है। यहाँ से आगे जाने के लिए आप चाहे तो टैक्सी बुक कर सकते हैं या बस से भी जा सकते हैं। हरिद्वार से सोनप्रयाग 235 किलोमाटर और सोनप्रयाग से गौरीकुंड 5 किलोमाटर आप सड़क मार्ग से किसी भी प्रकार की गाड़ी से जा सकते है। इससे आगे का 16 किलोमाटर का रास्ता आपको पैदल ही चलना होगा या आप पालकी या घोडा से भी जा सकते हैं। रास्ता भी बहुत बहुत संभल कर चलने वाला है। हरिद्वार या ऋषिकेश में से आप जहाँ से भी यात्रा आरम्भ करें गौरीकुंड तक पहुँचने में 2 दिन लें। आप रात्रि विश्राम श्रीनगर (गढ़वाल) या रुद्रप्रयाग में करें और अगले दिन गौरीकुंड जाएं। यदि आप एक दिन में गौरीकुंड चले जाते हैं तो इस पहाड़ी रास्ते पर आप इतना अधिक थक जायेगें कि अगले दिन प्रतिकूल मौसम वाले जगह में गौरीकुंड से केदारनाथ की चढ़ाई चढ़ने में बहुत ही दिक्कत महसूस करेंगे। अच्छा यही होगा आप 2 दिन का समय लें ऐसा मेरा मानना है और मेरा अनुभव भी है। हरिद्वार के रास्ते में आपको बहुत ऐसे स्थान मिलेंगे जहाँ आप रात में रुक सकते हैं। पर इन जगहों में श्रीनगर और रुद्रप्रयाग लगभग आधी दुरी पर है। आप चाहे तो गुप्तकाशी में भी रुक सकते हैं और यदि आप पहले दिन हरिद्वार या ऋषिकेश से गुप्तकाशी तक पहुँच जाते हैं तो अगले दिन गौरीकुंड में रुकने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि गुप्तकाशी से गौरीकुंड 1 से 1ः30 घंटे का ही रास्ता है। आप अपना सामान होटल या गेस्ट हाउस में लाॅकर रूम में रखवाकर गुप्तकाशी से सुबह जल्दी 6 बजे तक निकल जाएँ और 8 बजे तक गौरीकुंड से चढ़ाई करना शुरू कर दें। शाम तक केदारनाथ पहुंचे दर्शन करे और रात में केदारनाथ में रुकें। यदि चाहे तो सुबह फिर से दर्शन करे और फिर वापस गौरीकुंड आ जाये और फिर गौरीकुंड से गुप्तकाशी आकर रात में रुकें। यदि आप पहले दिन श्रीनगर या रुदप्रयाग में रुकते हैं तो अगले दिन आप सारा सामान साथ में ले जाये और गौरीकुंड तक पहुचे और रात में गौरीकुंड में ठहरें। और फिर उसके अगले दिन सामान लाॅकर रूम में रखकर सुबह 5 बजे चढ़ाई शुरू कर दें। केदारनाथ पहुँच कर दर्शन करे फिर रात में रुकें या वापस गौरीकुंड वापस आ जाये। पर मेरा तो ये मानना है कि यदि आप केदारनाथ जाते है तो भोलेनाथ की उस धरती पर एक रात अवश्य गुजारें। एक बात और गौरीकुंड से केदारनाथ के रास्ते में दोपहर बाद मौसम खराब हो जाता है जो करीब 2 से 3 बजे तक खराब ही रहता है और ये कोई एक या दो दिन नहीं बल्कि हर दिन होता है।
बस से जाने के लिए आपको पहले रुद्रप्रयाग जाना होगा। रुद्रप्रयाग से दो रास्ते हो जाते हैं। एक रास्ता केदारनाथ और दूसरा बद्रीनाथ जाता है। हरिद्वार या ऋषिकेश से बस मिलती है जो देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग होते हुए चमोली जाती है और चमोली से गोपेश्वर तक जाती है। उसी बस से आप रुद्रप्रयोग तक का सफर कर सकते हैं। रुद्रप्रयाग से गौरीकुण्ड तक के सफर के लिए पहले सोनप्रयाग तक जाना होगा। सोनप्रयाग तक जाने के लिए रुद्रप्रयाग से सीधी बसें या जीपें मिल जाती है और यदि नहीं भी मिले तो गुप्तकाशी तक जा सकते हैं और उसके बाद गुप्तकाशी से सोनप्रयाग। सोनप्रयाग पहुंचकर वहां से जीप द्वारा गौरीकुण्ड तक पहुंचे। गौरीकुंड से केदारनाथ का रास्ता पैदल का है। यहाँ से पैदल, पालकी या घोड़े पर जा सकते है।
*3. केदारनाथ कब जाएं?*
केदारनाथ आने के लिये मई से अक्टूबर के मध्य का समय आदर्श माना जाता है क्योंकि इस दौरान मौसम काफी सुखद रहता है। भारी बर्फबारी के कारण केदारनाथ के मूल निवासी भी सर्दियों में पलायन कर जाते हैं। वैसे भी ये मंदिर केवल गर्मियों ही खुलता है। हर साल मंदिर खुलने में और बंद होने में कुछ दिनों को फर्क होता है क्योकि इसके लिए मुर्हूत निकाला जाता है हिंदी पंचांग के अनुसार होता है। कपाट खुलने की तिथि अक्षय तृतीया और बंद होने की तिथि दीपावली के आसपास होती है। बरसात के मौसम में जाना यहाँ ठीक नहीं होता क्योकि इस दौरान लैंड स्लाइडिंग का खतरा बढ़ जाता है और सड़के बंद हो जाती है। यात्री यहाँ वहां फँस जाते हैं।
केदारनाथ आने के लिये मई से अक्टूबर के मध्य का समय आदर्श माना जाता है क्योंकि इस दौरान मौसम काफी सुखद रहता है। भारी बर्फबारी के कारण केदारनाथ के मूल निवासी भी सर्दियों में पलायन कर जाते हैं। वैसे भी ये मंदिर केवल गर्मियों ही खुलता है। हर साल मंदिर खुलने में और बंद होने में कुछ दिनों को फर्क होता है क्योकि इसके लिए मुर्हूत निकाला जाता है हिंदी पंचांग के अनुसार होता है। कपाट खुलने की तिथि अक्षय तृतीया और बंद होने की तिथि दीपावली के आसपास होती है। बरसात के मौसम में जाना यहाँ ठीक नहीं होता क्योकि इस दौरान लैंड स्लाइडिंग का खतरा बढ़ जाता है और सड़के बंद हो जाती है। यात्री यहाँ वहां फँस जाते हैं।
*4. केदारनाथ के रास्ते में विभिन्न स्थनों की दूरियां :*
दिल्ली से हरिद्वार : 250 से 300 किलोमीटर
हरिद्वार से ऋषिकेश : 24 किलोमीटर
ऋषिकेश से देवप्रयाग : 71 किलोमीटर
देवप्रयाग से श्रीनगर : 35 किलोमीटर
श्रीनगर से रुद्रप्रयाग : 32 किलोमीटर
रुद्रप्रयाग से दो रास्ते : एक रास्ता केदारनाथ और दूसरा रास्ता बदरीनाथ
रुद्रप्रयाग से गुप्तकाशी : 45 किलोमीटर
गुप्तकाशी से सोनप्रयाग : 31 किलोमीटर
सोनप्रयाग से गौरीकुंड : 5 किलोमीटर
गौरीकुंड से केदारनाथ : 16 किलोमीटर (नया रास्ता और पैदल चढ़ाई)
दिल्ली से हरिद्वार : 250 से 300 किलोमीटर
हरिद्वार से ऋषिकेश : 24 किलोमीटर
ऋषिकेश से देवप्रयाग : 71 किलोमीटर
देवप्रयाग से श्रीनगर : 35 किलोमीटर
श्रीनगर से रुद्रप्रयाग : 32 किलोमीटर
रुद्रप्रयाग से दो रास्ते : एक रास्ता केदारनाथ और दूसरा रास्ता बदरीनाथ
रुद्रप्रयाग से गुप्तकाशी : 45 किलोमीटर
गुप्तकाशी से सोनप्रयाग : 31 किलोमीटर
सोनप्रयाग से गौरीकुंड : 5 किलोमीटर
गौरीकुंड से केदारनाथ : 16 किलोमीटर (नया रास्ता और पैदल चढ़ाई)
शनिवार, 10 फ़रवरी 2018
भारेश्वर मंदिर
और प्राचीन मंदिर दूसरा नहीं भरेह का इतिहास तो बक्तप के पंछियों सा उड़ गया लेकिन अपने पद चिन्ह यहां के भारेश्वर मंदिर और किले के अवशेषों रूप में छोड़ गया। भारेश्वर मंदिर का निर्माण भी किले के निर्माण काल से ही जुड़ा़ हैं। इटावा जनपद में भारेश्वर मंदिर जितना विशाल और प्राचीन दूसरा मंदिर नहीं है। मंदिर का निर्माण पंचायत शैली में रहा होगा परन्तु अब इसका अस्ितत्व अत्यधिक क्षीण हो गया है। इटावा और औरैया क्षेत्र के निकटवर्ती मंदिरों (देवकली और टिक्सी) में दुर्ग वास्तु की स्पष्ट छाप मिलती है। टिक्सी ओर देवकली से भी प्राचीन भारेश्वर मंदिर है। ऐसा प्रतीत होता है कि दूर्गस्थापत्यत को मंदिर वास्तु में समावेश करने की प्रकिया का प्रारम्भं भारेश्वर से ही हुआ। भारेश्वर मंदिर एक अति विशाल जगती (मंदिर का चबूतरा)पर स्थापित है। प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है। दांए पार्श्व में यमुना और चम्बेल की विस्तीर्ण जलधाराएं आपस में मिल रही हैं। भारेश्वर महादेव के अभिषेक के लिये दोनों नदियां पहले प्रतिस्पर्धा करतीं रहीं और अंत में दोनों ने संयुक्तं रूप बनाकर आने का निर्णय कर लिया हो। प्रकृति की इस छटा का अवलोकन मंदिर के प्रत्येक स्थान से होता है। मंदिर के दाएं पार्श्व को बहुत मजबूती से गढ़ा गया है। दीवार में बुर्ज और समतल स्थांन अलग से बने हैं। दीवार के मध्य में रक्षक स्तम्भ भी हैं। इनमें पानी निकलने का भी स्थान है। दीवार और उसके ऊपर समतल स्थातन का प्रयोग बाढ़ रक्षा तथा बढ़े-ग्रस्तों की सहायता के लिये किया जाता रहा होगा। मंदिर की अधिक ऊचांई का कारण भी निकटवर्ती नदियों से बाढ़ रक्षा का रहा होगा। सीढ़ियों से मंदिर के गर्भग्रह की ओर जाने के लिए सीढ़ियों की संख्या एक सौ आठ बताई जाती है। प्रत्येक सीढ़ी आठ इंच के लगभग मोटी है। चारदीवारी के नीचे सामरिक महत्व का एक लम्बा बरामदा है। बरामदे में दाई और भूतल ने नीचे की ओर तहखानों के लिये सीढ़ियॉ चली गई हैं। बरामदा लगभग 5 फिट चौड़ा है। बरामदे के बाहर मराठा शैली में नदी की ओर छतरियॉ बनी हुई है। यह छतरियॉ पतले स्तम्भों पर टिकी है। मंदिर की सीढ़ी मार्ग पर लगभग 50 सीढियां चढ़ने के पश्चात पुन: सुरंग जैसा लम्बा बरामदा है। इन बरामदों का सभवत सैनिकों के लिये प्रयोग किये जाने की योजना थी। मंदिर मार्ग में इस प्रकार के सामरिक महत्व के बरामदों और छतरियों का होना तत्कालीन विदेशी आक्रमणों के समय मंदिरों को नष्ट करने के लिये होने वाले हमलों की याद दिलाता है। मंदिर के पूर्ण अधिष्ठा पन पर प्राचीन मूर्तिया के अवशेष विखरे पड़े हैं। इन मूर्तिया में वराह,सूर्य ,लक्ष्मी और महिष्मार्दिनी के अंकन है। इस प्रकार के अंकन 10 बीं से 12 बीं शताब्दियों के मध्यन प्रचुर मात्रा में किये गये। उपर्युक्ती कालखण्ड् में काल प्रस्तेर का प्रयोग किया गया जो यहां के मूर्तिशिल्पव में भी है। भारेश्वोर मंदिर का शिखर भी दुर्ग स्थाहपत्यभ का अनुपम उदाहरण है। मंदिर का स्कयन्धर भाग अत्यकन्त सुदृढ़ पत्थिरों और ईटों से निर्मित है। किले के ही समान गुम्बाज के ठीक नीचे कपिशीर्ष बने हैं। इनका प्रयोग शत्रु से मोर्चा लेते समय बाण वर्षा और पत्थ र फेंकने के लिये किया जाता था। गुम्बकज दोहरी बास्तु् शैली में निर्मित है। गुम्बथज के शीर्ष तक पहुंचने के लिये जटिल शैली में सीढ़ियों का निर्माण किया गया है। शीर्ष पर तड़ित के स्था।न पर पत्थेर का एक लघु गोल स्त म्भल है शिखर के बाहरी भाग पर ही मूर्ति शिल्पह का अंकन है। मूर्तिशिल्प में हाथी तथा घड़ियाल जैसी आकृतियॉ है। एक स्थाबन पर कच्छ प की भी आकृति है। इन प्रमाणों के आधार पर भारेश्व्र महादेव में शक्ितपीठ भी रही होगी क्यों कि गज का सम्बीन्ध लक्ष्मीर,घड़ियाल का सम्बेन्धश दुर्गा(शेर से पहले घड़ियाल ही दुर्गा का वाहन था) तथा कच्छतप का सम्बीन्धी यमुना से है। पत्थपर की मूर्तिशिल्पभ पर सीमेंट का भी प्रयोग है। मंदिर के गर्भगृह में विशाल शिवलिगं की स्थाटपना है। गर्भग्रह में अन्द(र की ओर प्रतिमा-फलक स्थापपना के लिये स्थाभन छोड़े गये हैं। शिखर के नीचे प्राय: देवियों के लिये नवरात्र में चढ़ाये जाने वाले झण्डेक, रखें हुये हैं जो मंदिर की प्रतीकात्मेक श्रद्धा की अभिव्यिक्ित करते हैं। यहां शिवरात्रि के अवसर पर भरेह के राजवंश की ओर से विशाल मेले का भी आयोजन होता है।
शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018
अगली बार शिलोंग चेरापूंजी का प्लान बने तो गारो हिल्स भी जोड़ना अपनी लिस्ट में... और अगर विद फैमिली हो, तब तो ज़रूर ही ज़रूर जाना...
जनाब, पूर्वोत्तर से दूर बैठकर इसकी बातें करना बड़ा आसान है... "बेइंतिहा खूबसूरती" की कल्पना करना बड़ा सहज है... मोस्ट पॉपुलर टूरिस्ट सर्किट में घूमकर चले जाना और फिर कहना कि इधर तो बच्चा बच्चा हिंदी जानता है... ढाई हजार के कमरे में बैठकर मेहमाननवाजी की बातें करना...
अरे, कभी रिमोट में जाओ... असली दुनिया मिलेगी... दो दिन भी टिक जाओ तो कहना... मेघालय में 11 जिले हैं... शिलोंग, चेरापूंजी एक ही जिले में हैं... यही टूरिस्ट सर्किट है... इसके अलावा 10 जिले और भी हैं... गारो हिल्स में 5 जिले हैं... या शायद 4... और बड़े खतरनाक फीडबैक मिल रहे हैं उधर के...
उग्रवादी गतिविधि, जीरो टूरिज्म, बांग्लादेश बॉर्डर, चुनावी माहौल... अगली बार शिलोंग चेरापूंजी का प्लान बने तो गारो हिल्स भी जोड़ना अपनी लिस्ट में... और अगर विद फैमिली हो, तब तो ज़रूर ही ज़रूर जाना...
कल जब मैंने लिखा था कि मेघालय में हिंदी नहीं है, तो एक मित्र ने मुझे झूठा बोल दिया था... वो ज़रूर शिलोंग, चेरापूंजी से ही लौट गया होगा... यह फोटो जोवाई का है, जहाँ हम चिकन समोसा लेते-लेते बाल-बाल बचे और सब्जी पराँठा इस उम्मीद में खा रहे हैं कि आलू की सब्जी में चिकन, बीफ या पोर्क नहीं होगा...
सुबह गुवाहाटी से चले... लेकिन शिलोंग ने बिल्कुल भी आकर्षित नहीं किया... मुझे शहर पसंद नहीं, भले ही वो कितना ही बड़ा 'टूरिस्ट प्लेस' हो... शिलोंग पीक ज़रूर गये, लेकिन बुध को वो बंद रहती है... जोवाई आ गये... सड़क ने दिल जीत लिया... जोवाई में रुकना था...
पहला होटल... एक महिला... औसत कमरा... हरद्वार में तीन तीन सौ के मिलते हैं ऐसे कमरे... कितने का है?... सत्रा सौ... मुझे सत्रह सौ सुनायी पड़ा... दोबारा बताओ, हाऊ मच?... सत्रा सौ... इस बावली को हिंदी नहीं आती... मेघालय में हिंदी नहीं है... शायद सात सौ को सत्रा सौ बोल रही है... या फिर सात सौ ही बोल रही होगी, लेकिन मेरे कान बज रहे हैं...
फिर वो आयी अंग्रेजी पे... वन थाउजेंड सेवन हंड्रेस... मेरे दीदे फ़टे रह गये... यह तो वाकई सत्रह सौ कह रही है... मोलभाव करूँ भी तो कितना!... आठ सौ... नाईं...
दीप्ति ने पूछा... कितने का है?... सत्रह सौ का... चक्कर खाकर गिरने से बाल बाल बची...
...
जोवाई में और होटल ढूंढने लगे... अचानक समोसे दिख गये... रुक, रुक... कमरा तो होता रहेगा, लेकिन समोसा फिर ना मिलेगा...
... तो फिलहाल की कहानी ये है कि कमरा तो 800 का मिल गया, लेकिन हम समोसे नहीं
अरे, कभी रिमोट में जाओ... असली दुनिया मिलेगी... दो दिन भी टिक जाओ तो कहना... मेघालय में 11 जिले हैं... शिलोंग, चेरापूंजी एक ही जिले में हैं... यही टूरिस्ट सर्किट है... इसके अलावा 10 जिले और भी हैं... गारो हिल्स में 5 जिले हैं... या शायद 4... और बड़े खतरनाक फीडबैक मिल रहे हैं उधर के...
उग्रवादी गतिविधि, जीरो टूरिज्म, बांग्लादेश बॉर्डर, चुनावी माहौल... अगली बार शिलोंग चेरापूंजी का प्लान बने तो गारो हिल्स भी जोड़ना अपनी लिस्ट में... और अगर विद फैमिली हो, तब तो ज़रूर ही ज़रूर जाना...
कल जब मैंने लिखा था कि मेघालय में हिंदी नहीं है, तो एक मित्र ने मुझे झूठा बोल दिया था... वो ज़रूर शिलोंग, चेरापूंजी से ही लौट गया होगा... यह फोटो जोवाई का है, जहाँ हम चिकन समोसा लेते-लेते बाल-बाल बचे और सब्जी पराँठा इस उम्मीद में खा रहे हैं कि आलू की सब्जी में चिकन, बीफ या पोर्क नहीं होगा...
सुबह गुवाहाटी से चले... लेकिन शिलोंग ने बिल्कुल भी आकर्षित नहीं किया... मुझे शहर पसंद नहीं, भले ही वो कितना ही बड़ा 'टूरिस्ट प्लेस' हो... शिलोंग पीक ज़रूर गये, लेकिन बुध को वो बंद रहती है... जोवाई आ गये... सड़क ने दिल जीत लिया... जोवाई में रुकना था...
पहला होटल... एक महिला... औसत कमरा... हरद्वार में तीन तीन सौ के मिलते हैं ऐसे कमरे... कितने का है?... सत्रा सौ... मुझे सत्रह सौ सुनायी पड़ा... दोबारा बताओ, हाऊ मच?... सत्रा सौ... इस बावली को हिंदी नहीं आती... मेघालय में हिंदी नहीं है... शायद सात सौ को सत्रा सौ बोल रही है... या फिर सात सौ ही बोल रही होगी, लेकिन मेरे कान बज रहे हैं...
फिर वो आयी अंग्रेजी पे... वन थाउजेंड सेवन हंड्रेस... मेरे दीदे फ़टे रह गये... यह तो वाकई सत्रह सौ कह रही है... मोलभाव करूँ भी तो कितना!... आठ सौ... नाईं...
दीप्ति ने पूछा... कितने का है?... सत्रह सौ का... चक्कर खाकर गिरने से बाल बाल बची...
...
जोवाई में और होटल ढूंढने लगे... अचानक समोसे दिख गये... रुक, रुक... कमरा तो होता रहेगा, लेकिन समोसा फिर ना मिलेगा...
... तो फिलहाल की कहानी ये है कि कमरा तो 800 का मिल गया, लेकिन हम समोसे नहीं
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