शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

भारेश्वर मंदि‍र

 और प्राचीन मंदि‍र दूसरा नहीं भरेह का इति‍हास तो बक्तप के पंछि‍यों सा उड़ गया लेकि‍न अपने पद चि‍न्ह यहां के भारेश्वर मंदि‍र और कि‍ले के अवशेषों रूप में छोड़ गया। भारेश्वर मंदि‍र का नि‍र्माण भी कि‍ले के नि‍र्माण काल से ही जुड़ा़ हैं। इटावा जनपद में भारेश्वर मंदि‍र जि‍तना वि‍शाल और प्राचीन दूसरा मंदि‍र नहीं है। मंदि‍र का नि‍र्माण पंचायत शैली में रहा होगा परन्तु अब इसका अस्‍ि‍तत्व अत्यधि‍क क्षीण हो गया है। इटावा और औरैया क्षेत्र के नि‍कटवर्ती मंदि‍रों (देवकली और टि‍क्सी) में दुर्ग वास्तु की स्पष्ट छाप मि‍लती है। टि‍क्सी ओर देवकली से भी प्राचीन भारेश्वर मंदि‍र है। ऐसा प्रतीत होता है कि‍ दूर्गस्थापत्यत को मंदि‍र वास्तु में समावेश करने की प्रकि‍या का प्रारम्भं भारेश्वर से ही हुआ। भारेश्वर मंदि‍र एक अति‍ वि‍शाल जगती (मंदि‍र का चबूतरा)पर स्थापि‍त है। प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है। दांए पार्श्व में यमुना और चम्बेल की वि‍स्तीर्ण जलधाराएं आपस में मि‍ल रही हैं। भारेश्वर महादेव के अभि‍षेक के लि‍ये दोनों नदि‍यां पहले प्रति‍स्पर्धा करतीं रहीं और अंत में दोनों ने संयुक्तं रूप बनाकर आने का नि‍र्णय कर लि‍या हो। प्रकृति‍ की इस छटा का अवलोकन मंदि‍र के प्रत्येक स्थान से होता है। मंदि‍र के दाएं पार्श्व को बहुत मजबूती से गढ़ा गया है। दीवार में बुर्ज और समतल स्थांन अलग से बने हैं। दीवार के मध्य‍ में रक्षक स्तम्भ भी हैं। इनमें पानी नि‍कलने का भी स्था‍न है। दीवार और उसके ऊपर समतल स्थातन का प्रयोग बाढ़ रक्षा तथा बढ़े-ग्रस्तों की सहायता के लि‍ये कि‍या जाता रहा होगा। मंदि‍र की अधि‍क ऊचांई का कारण भी नि‍कटवर्ती नदि‍यों से बाढ़ रक्षा का रहा होगा। सीढ़ि‍यों से मंदि‍र के गर्भग्रह की ओर जाने के लि‍ए सीढ़ि‍यों की संख्या एक सौ आठ बताई जाती है। प्रत्येक सीढ़ी आठ इंच के लगभग मोटी है। चारदीवारी के नीचे सामरि‍क महत्व का एक लम्बा बरामदा है। बरामदे में दाई और भूतल ने नीचे की ओर तहखानों के लि‍ये सीढ़ि‍यॉ चली गई हैं। बरामदा लगभग 5 फि‍ट चौड़ा है। बरामदे के बाहर मराठा शैली में नदी की ओर छतरि‍यॉ बनी हुई है। यह छतरि‍यॉ पतले स्तम्भों पर टि‍की है। मंदि‍र की सीढ़ी मार्ग पर लगभग 50 सीढि‍यां चढ़ने के पश्चात पुन: सुरंग जैसा लम्बा बरामदा है। इन बरामदों का सभवत सैनि‍कों के लि‍ये प्रयोग कि‍ये जाने की योजना थी। मंदि‍र मार्ग में इस प्रकार के सामरि‍क महत्व के बरामदों और छतरि‍यों का होना तत्कालीन वि‍देशी आक्रमणों के समय मंदि‍रों को नष्ट करने के लि‍ये होने वाले हमलों की याद दिलाता है। मंदि‍र के पूर्ण अधि‍ष्ठा पन पर प्राचीन मूर्तिया के अवशेष वि‍खरे पड़े हैं। इन मूर्ति‍या में वराह,सूर्य ,लक्ष्मी और महि‍ष्मार्दिनी के अंकन है। इस प्रकार के अंकन 10 बीं से 12 बीं शताब्दि‍यों के मध्यन प्रचुर मात्रा में कि‍ये गये। उपर्युक्ती कालखण्ड् में काल प्रस्तेर का प्रयोग कि‍या गया जो यहां के मूर्तिशि‍ल्पव में भी है। भारेश्वोर मंदि‍र का शि‍खर भी दुर्ग स्थाहपत्यभ का अनुपम उदाहरण है। मंदि‍र का स्कयन्धर भाग अत्यकन्त‍ सुदृढ़ पत्थिरों और ईटों से नि‍र्मि‍त है। कि‍ले के ही समान गुम्बाज के ठीक नीचे कपि‍शीर्ष बने हैं। इनका प्रयोग शत्रु से मोर्चा लेते समय बाण वर्षा और पत्थ र फेंकने के लि‍ये कि‍या जाता था। गुम्बकज दोहरी बास्तु् शैली में नि‍र्मि‍त है। गुम्बथज के शीर्ष तक पहुंचने के लि‍ये जटि‍ल शैली में सीढ़ि‍यों का नि‍र्माण कि‍या गया है। शीर्ष पर तड़ि‍त के स्था।न पर पत्थेर का एक लघु गोल स्त म्भल है शि‍खर के बाहरी भाग पर ही मूर्ति शि‍ल्पह का अंकन है। मूर्तिशि‍ल्प में हाथी तथा घड़ि‍याल जैसी आकृति‍यॉ है। एक स्थाबन पर कच्छ प की भी आकृति‍ है। इन प्रमाणों के आधार पर भारेश्व्र महादेव में शक्‍ि‍तपीठ भी रही होगी क्यों कि‍ गज का सम्बीन्ध‍ लक्ष्मीर,घड़ि‍याल का सम्बेन्धश दुर्गा(शेर से पहले घड़ि‍याल ही दुर्गा का वाहन था) तथा कच्छतप का सम्बीन्धी यमुना से है। पत्थपर की मूर्तिशि‍ल्पभ पर सीमेंट का भी प्रयोग है। मंदि‍र के गर्भगृह में विशाल शि‍वलि‍गं की स्थाटपना है। गर्भग्रह में अन्द(र की ओर प्रति‍मा-फलक स्थापपना के लि‍ये स्थाभन छोड़े गये हैं। शि‍खर के नीचे प्राय: देवि‍यों के लि‍ये नवरात्र में चढ़ाये जाने वाले झण्डेक, रखें हुये हैं जो मंदि‍र की प्रतीकात्मेक श्रद्धा की अभि‍व्यिक्‍ि‍त करते हैं। यहां शि‍वरात्रि‍ के अवसर पर भरेह के राजवंश की ओर से वि‍शाल मेले का भी आयोजन होता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें